"मैं फिर से खुद बनने निकली हूं – अब किसी पहचान की मोहताज नहीं"
कभी आपने खुद से मुलाक़ात की है? नहीं उस चेहरे से जो आईने में दिखता है... मैं उस आवाज़ की बात कर रही हूँ जो अंदर से बार-बार कहती है — "मैं भी हूं... मुझे भी सुनो।" हर दिन हम घर, बच्चे, परिवार, जिम्मेदारियों में खो जाते हैं। हम अपने लिए जीने की सोचते हैं, लेकिन सोच ही रह जाती है। हम दूसरों की खुशी बनते-बनते, अपनी हँसी भूल जाते हैं। लेकिन अब नहीं। अब वक्त है खुद से मिलने का। खुद से दोस्ती करने का। खुद के लिए ख्वाब देखने का। --- तो शुरुआत कैसे करें? हर दिन 15 मिनट सिर्फ खुद के लिए रखें – कोई गाना सुनिए, लिखिए, सोइए या बस चुप रहिए आईना देखिए और खुद से कहिए – मैं तुम्हें मानती हूं लोग क्या सोचेंगे? इस सवाल को अलविदा कहिए हर दिन कुछ ऐसा कीजिए जो सिर्फ आपको अच्छा लगे – भले छोटा हो --- याद रखिए: "जब हम खुद से जुड़ते हैं, तो दुनिया अपने आप बदलने लगती है।" --- अंत में: ये ब्लॉग सिर्फ शब्द नहीं हैं — ये एक शुरुआत है। खुद से मिलने की, खुद को अपनाने की। क्या आज आप अपने लिए 15 मिनट निकाल सकती हैं? क्योंकि आप सिर्फ किसी की माँ, बहन या पत्नी नहीं हैं... आप खुद एक पूरी दुनिया हैं।
Bhut hi badhiya or dilko chhu lenevala he a blog
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